जयपुर। हवामहल के निर्माता जयपुर के महाराजा सवाई प्रतापसिंह गोविंद देव के अनन्य भक्त थे।
वे गोविंद को अपना इष्ट मानते थे। उन्होंने अपने राज्य का नाम गोविंद देव के नाम कर रखा था। वे गोविंद भक्त के समक्ष राज्य का सुख भी गौण समझते थे - ब्रजनिधि ब्रजरस चाख्यो जानें ता सुख आगे राज कहा री। वे व्रजनिधि के उपनाम से साहित्य रचना करते थे। प्रतापसिंह सारी जिंदगी समस्याओं में उलझे रहे। संकट के क्षणों में वे अपने इष्ट देव गोविंद को अपना संकट मोचक मानते थे - जिनके श्री गोविंद सहाई, तिह न के चिंता करे बलाई। वे रोज गोविंद देव के दर्शन करते एवं उन्हें अपने बनाए हुए पद भेंट करते थे। गोविंद को समर्पित करने के बाद छोटे-छोटे आकार के कागज के खर्रो में लिखे इन पदों को पुस्तक रूप में सुंदर रूप में पुन-लेखन कर लिया जाता था। ऐसे में बहुत सारे खर्रे आज भी सिटी पैलेस के संग्रहालय में लाल पोटलियों में सुरक्षित है। कवि कृष्णदत्त द्वारा रचित प्रतापप्रकाश नामक समकालीन ग्रंथ में भी प्रतापसिंह की गोविंद भक्ति का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया है। दान करने के बाद प्रताप सिंह अपनी मनपसंद पोशाक धारण करके गोविंद देव के मंदिर जाते थे। वे हाथ से खींचे जाने वाले हथ रथ में सवार होकर जयनिवास नामक बाग में मंदिर जाते|
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