जयपुर। दिवाली का अवसर है तो मिठाइयों की बात
होना तो स्वाभाविक है। बेशक बदलते जयपुर
में अब
मिठाई के ढेरों ऑप्शन आ गए हैं, लेकिन आज भी यहां की ट्रेडिशनल मिठाइयों को लोग पसंद करते हैं। ये कम नुकसानदायक और निराले स्वाद वाली होती हैं। वैसे अब इनके बनाने वाले भी बहुत कम ही लोग बचे हैं, इसलिए आज फेस्टिवल के अवसर पर हम आपको मोटादाना मिठाई जिसे अंचलों में रसभरी भी कहा जाता है उसके बारे में बताएंगे। अभी कुछ दिनों पहले ही हमारा जरूरी शॉपिंग के लिए चारदीवारी के गोपाल जी के रास्ते में जाना हुआ तो वहां इसी मिठाई की तलाश में हम पहुंचे पोद्दार स्वीट्स पर। करीब 150 साल पुरानी इस दुकान को कभी दुर्गालाल जी पोद्दार ने शुरू किया था। ऐसे बनाएं : इस विरासत को सहेज रहीं उनकी बहुएं विमला और मंजू ने बताया कि मोटादाना बनाने के लिए एक किलो धुली मूंग की दाल और 200 ग्राम धुली उड़द की दाल मिलाई जाती है। इनको दाे घंटे तक पानी में भिगाेई जाती है। अब इस दाल को दरदरा पीसकर फेंटा जाता है। इसके बाद इसे देशी घी में दो बार तला जाता है। पहली बार हल्का दूसरी बार ब्राउन किया जाता है। इसके लिए चाशनी भी दो बार बनती है। पहले एक तार वाली पतली चाशनी बनाते हैं जिसमें तले हुए दानों काे डाल देते हैं। फिर दूसरी तीन तार वाली गाढ़ी चाशनी में इसे डाला जाता है। पहले वाली चाशनी के अंदर और दूसरी ऊपरी परत तक ऊपर फैल जाती है। ये दाने ऊपर सख्त व अंदर से नर्म होते हैं। इस मिठाई को 6-7 दिनों तक काम में लिया जाता है। लोग ऑर्डर के साथ इसे पैक कराकर बाहर भी ले जाते हैं। इस दिवाली अब इस रसभरी मिठाई का स्वाद ले सकते हैं।
मिठाई के ढेरों ऑप्शन आ गए हैं, लेकिन आज भी यहां की ट्रेडिशनल मिठाइयों को लोग पसंद करते हैं। ये कम नुकसानदायक और निराले स्वाद वाली होती हैं। वैसे अब इनके बनाने वाले भी बहुत कम ही लोग बचे हैं, इसलिए आज फेस्टिवल के अवसर पर हम आपको मोटादाना मिठाई जिसे अंचलों में रसभरी भी कहा जाता है उसके बारे में बताएंगे। अभी कुछ दिनों पहले ही हमारा जरूरी शॉपिंग के लिए चारदीवारी के गोपाल जी के रास्ते में जाना हुआ तो वहां इसी मिठाई की तलाश में हम पहुंचे पोद्दार स्वीट्स पर। करीब 150 साल पुरानी इस दुकान को कभी दुर्गालाल जी पोद्दार ने शुरू किया था। ऐसे बनाएं : इस विरासत को सहेज रहीं उनकी बहुएं विमला और मंजू ने बताया कि मोटादाना बनाने के लिए एक किलो धुली मूंग की दाल और 200 ग्राम धुली उड़द की दाल मिलाई जाती है। इनको दाे घंटे तक पानी में भिगाेई जाती है। अब इस दाल को दरदरा पीसकर फेंटा जाता है। इसके बाद इसे देशी घी में दो बार तला जाता है। पहली बार हल्का दूसरी बार ब्राउन किया जाता है। इसके लिए चाशनी भी दो बार बनती है। पहले एक तार वाली पतली चाशनी बनाते हैं जिसमें तले हुए दानों काे डाल देते हैं। फिर दूसरी तीन तार वाली गाढ़ी चाशनी में इसे डाला जाता है। पहले वाली चाशनी के अंदर और दूसरी ऊपरी परत तक ऊपर फैल जाती है। ये दाने ऊपर सख्त व अंदर से नर्म होते हैं। इस मिठाई को 6-7 दिनों तक काम में लिया जाता है। लोग ऑर्डर के साथ इसे पैक कराकर बाहर भी ले जाते हैं। इस दिवाली अब इस रसभरी मिठाई का स्वाद ले सकते हैं।
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