जयपुर| ब्रिटिश काल के प्रभाव से भारत के गिरजाघरों में आई रंगीन कांच (स्टेण्ड ग्लास) की कला को सबसे पहले जयपुर के महाराजा सवाई राम सिंह ने जयपुर रियासत के महलों और ऐतिहासिक इमारताें में कलाकारों के जरिए उतरवाया। जयपुर के गिरजाघरों में शालीमार का चर्च इस कला की एक मिसाल है। बाद में राजा रामसिंह के कला प्रेम की तर्ज़ पर जयपुर के चुनिदं| रईस लोगों ने हवेलियों में इस कला को आश्रय देकर अपनी हवेलियों को सुशोभित किया जाे बाद में जीर्ण शीर्ण हाेने लगा। उस काम को देखकर राजा रतलाम के वंशज जयपुर के कुमार पुष्पेन्द्र सिंह के मन में स्टेण्ड ग्लास की कला को पुर्नजीवित करने की इच्छा बलवती हुई। उन्हाेंने आज से पचास बरस पहले इस कला काे रेस्टाेर करना शुरु किया। पुष्पेंद्र सिंह अब अपनी इस अद्भुत वैभवमयी कला को, अपने इच्छुक शिष्यों को भी सिखा रहे हैं।
जयपुर| ब्रिटिश काल के प्रभाव से भारत के गिरजाघरों में आई रंगीन कांच (स्टेण्ड ग्लास) की कला को सबसे पहले जयपुर के महाराजा सवाई राम सिंह ने जयपुर रियासत के महलों और ऐतिहासिक इमारताें में कलाकारों के जरिए उतरवाया। जयपुर के गिरजाघरों में शालीमार का चर्च इस कला की एक मिसाल है। बाद में राजा रामसिंह के कला प्रेम की तर्ज़ पर जयपुर के चुनिदं| रईस लोगों ने हवेलियों में इस कला को आश्रय देकर अपनी हवेलियों को सुशोभित किया जाे बाद में जीर्ण शीर्ण हाेने लगा। उस काम को देखकर राजा रतलाम के वंशज जयपुर के कुमार पुष्पेन्द्र सिंह के मन में स्टेण्ड ग्लास की कला को पुर्नजीवित करने की इच्छा बलवती हुई। उन्हाेंने आज से पचास बरस पहले इस कला काे रेस्टाेर करना शुरु किया। पुष्पेंद्र सिंह अब अपनी इस अद्भुत वैभवमयी कला को, अपने इच्छुक शिष्यों को भी सिखा रहे हैं।
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