बखतराम शाह ने भी सन 1770 ई. में लिखित ‘बुद्धिविलास’ में जयपुर के बाजारों और इनमें बिकने वाली पतंगों का वर्णन करते हुए लिखा है- कहुं बेचत गुड़ी पतंगबाज। स्थापत्य के लिए ससं ार में प्रसिद्ध हवामहल के निर्माता सवाई प्रतापसिंह के समय में बनाए गए एक चित्र में पेशवाज पहनी हुई और आभषूणों से अलंकृत नायिका को पतंग उड़ाते हुए दिखाया गया है। जयपुर के राजाओं में पतंगबाजी में सबसे अधिक रुचि महाराजा राम सिंह (maharaja ram singh) (सन 1835- 1880 ई.) की रही। वे चंद्रमहल की छत से बड़े-बड़े पतंग ‘तुकल’ उड़ाया करते थे। नंदकिशोर पारीक के अनुसार चंद्रमहल की छत से जो तुकल उड़ाए जाते वे आदम कद पतंग होते, जिनके पांवों में चांदी की छोटी-छोटी घुंघरियां फूंदन बनकर लटकी रहती थीं। भट्ट मथुरादास शास्त्री ने अपने ‘जयपुरवैभवम्’ में मकर संक्रांति का बहुत मनोरंजक वर्णन करते हुए कहा है कि प्रत्येक घर में आनंद व उत्साह छा रहा है। नगर निवासी पतंगों का आनंद ले रहे हैं। बालक ऊंचा मुंह किए हुए पतंगों के पीछे भागादौड़ी कर रहे हैं। आज भी सकरात के दिन जयपुर में विशेष रूप से परकोटे के अंदर बसे हुए जयपुर में ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं।
बखतराम शाह ने भी सन 1770 ई. में लिखित ‘बुद्धिविलास’ में जयपुर के बाजारों और इनमें बिकने वाली पतंगों का वर्णन करते हुए लिखा है- कहुं बेचत गुड़ी पतंगबाज। स्थापत्य के लिए ससं ार में प्रसिद्ध हवामहल के निर्माता सवाई प्रतापसिंह के समय में बनाए गए एक चित्र में पेशवाज पहनी हुई और आभषूणों से अलंकृत नायिका को पतंग उड़ाते हुए दिखाया गया है। जयपुर के राजाओं में पतंगबाजी में सबसे अधिक रुचि महाराजा राम सिंह (maharaja ram singh) (सन 1835- 1880 ई.) की रही। वे चंद्रमहल की छत से बड़े-बड़े पतंग ‘तुकल’ उड़ाया करते थे। नंदकिशोर पारीक के अनुसार चंद्रमहल की छत से जो तुकल उड़ाए जाते वे आदम कद पतंग होते, जिनके पांवों में चांदी की छोटी-छोटी घुंघरियां फूंदन बनकर लटकी रहती थीं। भट्ट मथुरादास शास्त्री ने अपने ‘जयपुरवैभवम्’ में मकर संक्रांति का बहुत मनोरंजक वर्णन करते हुए कहा है कि प्रत्येक घर में आनंद व उत्साह छा रहा है। नगर निवासी पतंगों का आनंद ले रहे हैं। बालक ऊंचा मुंह किए हुए पतंगों के पीछे भागादौड़ी कर रहे हैं। आज भी सकरात के दिन जयपुर में विशेष रूप से परकोटे के अंदर बसे हुए जयपुर में ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं।
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