डेढ़ साल के बच्चे में भी टाइप वन डाइबिटीज
जयपुर। देश में मधुमेह रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। दुनियाभर के साइंटिस्ट इस रोग पर काबू पाने के लिए जुटे हुए हैं। एक चिंता की बात यह है कि मधुमेह रोगियों में बच्चों की संख्या (टाइप वन डाइबिटिज) भी ज्यादा बढ़ रही है। यही कारण है कि डॉक्टरों की ओर से मधुमेह पीडि़त बच्चों को जागरूक करने के लिए समय-समय पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। एक निजी अस्पताल में शनिवार को डाइबिटिज ग्रसित बच्चों के लिए स्नेह मिलन व जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया तो बच्चों के चहरे खिल उठे।कार्यक्रम के आयोजक डॉ. प्रेमप्रकाश पाटीदार ने बताया कि कार्यक्रम में सबसे कम उम्र का बच्चा एक साल छह महीने और सबसे अधिक उम्र का बच्चा १६ साल का था। कार्यक्रम में बच्चे मिले तो उन्हें लगा कि इस रोग से ग्रसित वे अकेले नहीं हैं। बच्चों ने अनुभवों को भी साझा किया।
यह है टाइप वन डाइबिटिज :
टाइप वन डाइबिटिज तब होती है, जब पैंक्रियास की इन्सुलिन उत्पन्न करने वाली कोशिकाएं (बीटा सेल्स) क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और इस कारण इन्सुलिन उत्पादन कम या समाप्त हो जाता है और ग्लूकोस शरीर की कोशिकाओं तक नहीं पहुंच पाता। यह बच्चों और किशोरों में आम है। त्वरित समस्याओं में यदि रक्त में ग्लूकोस की मात्रा के अनुसार इन्सुलिन की सही मात्रा का इंजेक्शन न दिया जाए तो इन्सुलिन के कम स्तर से डायबिटिक कीटोएसिडोसिस (शरीर में एसिडिक कीटोन बॉडीज का बनना) और अधिक स्तर से हाइपोग्लायसीमिया (रक्त शर्करा की कम मात्रा) हो सकते हैं।
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