महाराजा रामसिंह का सपना था आधुनिक जयपुर

महाराजा रामसिंह का सपना था आधुनिक जयपुर 

महाराजा जयसिंह तृतीय की मृत्यु के बाद रामसिंह द्वितीय का जन्म 1835 में हुआ और इसी वर्ष नवजात को गद्दी पर बैठा दिया गया। लेकिन कामकाज अंग्रेजों की देखरेख में एक माइनारिटी काउन्सिल देखती थी। लेकिन माइनारिटी काउन्सिल की इस पंचायत पर रावल शिवसिंह और ठाकुर लक्ष्मणसिंह जो फौज बख्शी भी था, दबदबा हो गया। इन दोनों ने अपने चहेतों को जागीरें बांटी और इस कारण उन पर राजकोष का धन हड़पने का आरोप लगा। माजी और बढारने भी उन्हें हटाना चाहती थी। रूपा बढारण को छोड़ दिया गया था और उसने वह छ: लाख रुपये राज्य को सौंप दि ए जो झूंथाराम ने जनानी ड्योढ़ी में उनके पास छुपा रखे थे। यह राशि कर्ज चुकाने में काम आई। रामसिह बड़े हो रहे थे और उसने अपने कुशल नेतृत्व से राजकाज में जहां सुधार कि या वहीं जयपुर को बदलते हुए दौर में आधुनिक शहर बनाने के प्रयास भी शुरू किए। मुगल 300 साल राज कर बिखर चुके थे और रामसिह को मुगलों का डर नहीं रहा था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी का राज हो चला था और और रामसिह ने नए जमाने के साथ चलने का फैसला लिया।
सबसे बड़ी पहल रामसिंह ने ऐतिहासि क जयपुर शहर को आधुनि क शहर बनाने की थी। जि सके अन्तर्गत पूरा इंजीनियरिंग विभाग खोलकर 1875 में वॉटर वक्र्स , 1878 में गैस की लाइटें और इसके बाद तो विकास के क्रम में मेयो हास्पिट ल, अकाल सहायता कार्य के अन्तर्गत रामनि वास बाग, म्यूजियम, स्कूल ऑफ आट्र्स, त्रिपोलिया की पब्लिक लाइब्रेरी, रामप्रकाश रंगशाला, महाराजा कॉलेज (1844), संस्कृत स्कूल (1865), गोनेर का नोबल्स स्कूल (1862) और छात्राओं का स्कूल (1867) में खोला। जयपुर से अजमेर और जयपुर से आगरा की हाइवे बनाई।
रामसिंह अद्वितीय इस कारण भी सिद्ध हुए, क्योंकि उन्होंने बन्धुआ, गुलामी और अन्य कुरीति यों विशेषकर सती प्रथा बन्द कराई। पोथीखाने के लिए सबसे पहली प्रेस उन्होंने ही लगवाई। रामनिवास बाग का डि जाइन उन्होंने आर्ट स्कूल में प्रिंसिपल डॉ. डी.फैबेक्स से करवाया। यह बाग 33 एकड़ में फैला था और उस जाने में चार लाख में बना।
रामनिवास बाग में जि मनेजियम, क्रिकेट और फुटबाल के मैदान बनाए। जन्तुशाला में पक्षी और जानवर विभि न्न स्था नों से उन्होंने मंगाए। लेकिन जयपुर के स्था पत्य का सबसे सुन्दर नमूना प्रिं स एलबर ्ट हॉल उनकी ऐसी देन है आज जयपुर की शान है।
अलबर ्ट हॉल का नक्शा अंग्रेज ची फ इंजीनि यर सर स्वै न्टन जेकब ने बनाया। अलबर ्ट हॉल राजकुमार अलबर ्ट की जयपुर यात्रा की याद में बनाया गया। बाद में अलबर ्ट कि ंग एडवर्ड सप्तम हुए। यह सारसिनि क आर्किटेक्टर का अद्भुत नमूना है। 1870 में मेयो हॉस्पिट ल, सांगानेरी गेट के बाहर बनाया और लॉर्ड मेयो की एक विशाल आदमकद मूर्ति भी उन्होंने लगाई जो आज कहीं जनाना अस्पत ाल में गड़ी हुई है। रामसि ंह ने ही रामबाग पैलेस बनाया और इसे विशाल रूप दि या जो अद्भुत है। उस जमाने में जब सि नेमा नहीं होते थे, संगीत और नाट्य प्रेमी रामसिह ने वहां एक रंगशाला रामप्रकाश स्थापित की जो अपने जमाने का देश का सबसे सुन्दर रंगमंच बना।

अंग्रेज फोटोग्राफर को बनाया मुखिया 

गीत संगीत के शौकीन रामसिंह रसिक भी पूरे थे और उनकी कुल नौ रानियां थी, जिसमें दो रीवा से आई थी। तवायफों को जहां उन्होंने प्रोत्सा हन दि या वहीं मुगल हरम की तरह जनानी ड्योढ़ई की बाईयों को संगीत और नृत्य सिखाया। लेकि न फोटोग्राफी उनका पहला शौक था और जैसे-जैसे दुनिया में कैमरे इजाद होते गए इन कैमरों को खरीदकर उन्होंने अपने फोटोखाना को सजाया और एक अंग्रेज फोटोग्राफर को मुखिया बनाया। महाराजा ग्ला स प्लेट का उपयोग कर फोटो लेते और अपने लि ए हुए फोटो देखकर खुश होते। वह तवायफों को तैयार कराकर उनके फोटो लेते जि समें गौहर खान नाम की एक तवायफ उनकी मनपसन्द मॉडल थी। तवायफों की नाचते हुए और गाते हुए उनकी असंख्य फोटो हैं। जयपुर के विभि न्न भवनों की फोटो उन्होंने ली और आमेर तथा जयपुर के वि हंगम दृश्य पहाड़ों पर चढ़कर उन्होंने खींचे। ठाकुर, सरदार, जमींदारों की भी तस्वी रें उन्होंने ली और वि देशी पर्यटकों को महल में खड़ाकर उनकी तस्वी र लेकर वह उन्हें उपहार में देते जि ससे पर्यटक नगरी के नाम से वि देशों में जयपुर का प्रचार हो सके। 

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