मतदाता बना 'राजा', लेकिन चुनाव आयोग और इवीएम पर अंगुली क्यों....


राइट टू रिजेक्ट
वोटर्स को 'राइट टू रिजेक्ट' के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश में आशा की किरण जगी है। राजनीतिक दलों पर काफी समय से यह दबाव डाला जा रहा था कि वे स्वच्छ और ईमानदार छवि के प्रत्याशी ही चुनाव मैदान में उतारं, लेकिन वे तो चिकने घड़े बने हुए थे। उन्हें लगता था कि उन पर कोई लगाम नहीं लगा सकता। जनता भी असहाय सी इन दलों की मनमानी को देख रही थी। अब सुप्रीम कोर्ट इस दिशा में सक्रिय हुआ है, तो जनता की आंखों में चमक आ गई है। उसे लग रहा है कि निराशा के बादल छंट रहे हैं। आशा है राजनीतिक दल अब संभलेंगे और मतदाता को छलने से बाज आएंगे। जब किसी संसदीय या विधानसभा क्षेत्र में भारी तादाद में 'नन ऑफ द अबव' का बटन दबेगा, तो राजनीतिक दलों की छवि प्रभावित होगी। संभव है इससे बचने के लिए राजनीतिक दल प्रत्याशियों के चयन में सावधानी बरतना शुरू कर दें।
लेकिन चुनाव आयोग और इवीएम पर अंगुली क्यों....
चुनाव आयोग ने हाल ही कहा कि वो किसी पार्टी के लिए काम नहीं करते, लेकिन पिवक्ष में आते ही कोई भी पार्टी उन पर अंगुली क्यों उठाती है, कांग्रसे के समय पर दूसरी पार्टियों ने अंगुली उठाई, अब पांच राज्यों में और दिल्ली चुनाव के बाद इन पर अंगुली उठाने का क्या मतलब.... वोटर्स की ताकत को महसूस क्यों नहीं करते ये पार्टी के नेता...

चुनाव सुधारों की जरूरत काफी अर्से से महसूस की जा रही है। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जो आंदोलन किया, उस  दौरान भी चुनाव सुधारों की मांग उठी थी, लेकिन इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया गया। जो काम केंद्र सरकार और संसद को करना चाहिए, वह काम अब सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने का फैसला हो या फिर किसी अपराध में दो वर्ष से ज्यादा की सजा पाने वाले सांसदों-विधायकों की सदस्यता खत्म करने का।

अब पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की जनहित याचिका पर चुनाव सुधार की मुहिम को आगे बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मतदाता नेगेटिव वोट डालकर सभी उम्मीदवारों को खारिज कर सकता है। मतदान के अधिकार की तरह ही यह उसका संवैधानिक अधिकार है। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिए हैं कि वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में ऐसे बटन की व्यवस्था करे, ताकि जिन मतदाताओं को कोई भी उम्मीदवार पसंद न हो, वे उसे दबाकर अपनी राय का इजहार कर सकें। वैसे तो मतदाताओं को यह अधिकार पहले ही है, लेकिन इसकी एक तो जानकारी कम है और फिर इसका इस्तेमाल करने के लिए कागजी कार्यवाही करनी पड़ती है। इसके लिए मतदान केंद्र पर चुनाव अधिकारी को नियम ४९ ओ के तहत एक फार्म भरकर देना पड़ता है। इस दौरान मतदाता की पहचान भी उजागर हो जाती है। साथ ही इन मतों की गणना भी नहीं की जाती। इसलिए इसका कोई मतलब नहीं था। अब न्यायालय के फैसले के बाद ईवीएम में 'नन ऑफ द अबव' (नोटा) का बटन शामिल हो जाएगा, तो मतदाता बिना अपनी पहचान बताए इस अधिकार का प्रयोग कर सकेंगे। चुनाव सुधार की दिशा में यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण है। उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग ने वर्ष २००१ में ही केंद्र को इस आशय का प्रस्ताव भेज दिया था, लेकिन सरकार ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया।

बाध्यकारी प्रावधान जरूरी

बेहतर तो यह है कि न्यायालय का फैसला देखते हुए कुछ ऐसे बाध्यकारी प्रावधान किए जाएं, जिससे नेगेटिव वोटिंग का असर नजर आए। जैसे यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में विजयी उम्मीदवार को नेगेटिव वोटों से कम मत मिले, तो वहां चुनाव दुबारा से करवाया जाए। ऐसा होगा, तो राजनीतिक दलों पर अच्छे उम्मीदवार खड़ा करने का दबाव बनेगा। बांग्लादेश में ऐसा प्रावधान है कि यदि वहां नेगेटिव वोट कुल डाले वोटों के 50 फीसदी से ज्यादा हैं, तो उस निर्वाचन क्षेत्र में स्वत: ही चुनाव रद्द मान लिया जाता है और दुबारा चुनाव होता है। इस तरह की व्यवस्था भारत में भी की जा सकती है।

मतदान प्रतिशत बढ़ेगा

काफी कोशिश के बाद भी देश में मतदान प्रतिशत में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हो रही। लोगों को यह कहते सुना जाता है कि एक दल का प्रत्याशी सांपनाथ है, तो दूसरे दल का नागनाथ। ऐसी हालत में किसे वोट दें? इसलिए हम तो किसी को वोट ही नहीं देते। अब जब ईवीएम में 'नन ऑफ द अबव' का बटन शामिल हो जाएगा, तो ऐसे लोग मतदान के लिए घरों से निकल सकते हैं। इससे मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी होगी और देश का लोकतंत्र मजबूत होगा।

13 देशों में पहले से

नेगेटिव वोटिंग का अधिकार विश्व के 13 देशों में पहले से है। फ्रांस, बेल्जियम, ब्राजील, ग्रीस, उक्रेन, चिली, बांग्लादेश, अमेरिका, फिनलैंड, स्वीडन, कोलंबिया, स्टेट ऑफ  नेवेडा और स्पेन के मतदाता इसका वर्षों से इस्तेमाल कर रहे हैं। भारतीय संसद में भी जब वोटिंग होती है, तो मशीन में तीन बटन होते हैं। एक में यस, दूसरे में नो और तीसरे में एब्सटेन यानी मतदान में शामिल न होने का विकल्प होता है।

Comments