गधा


गधे जो जवानी की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे, एक दिन साथ साथ चल रहे थे ! एक धोबी का गधा था और दूसरा कुमार का ! एक की पीठ पर गंधे कपड़े लदे थे और दूसरे की पीठ पर मिट्टी के बर्तन ! दोनों तेज तेज चल रहे थे जब की उनके बूढ़े मालिक काफ़ी पीछे रह गये थे ! चौराहे पर ग्रीन लाईट मिल गयी और दोनो गधे सड़क पार कर गये लेकिन जैसे ही इनके मालिक वहा पहुँचे रेड लाईट हो गई ! मौका देख कर दोनो गधे एक पतली गली से होकर एक घास के मैदान में आ गये !

पीठ पर बोझ लेकिन खुली हवा में स्वतंत्रता का आभास, दिल में खुशी की उमंग, दोनों एक दूसऱे से बातें करने लगे ! कुमार के गधे ने धोबी के गधे से कहा, " यार आज तो तू गबरू जवान लग रहा है, क्या कोई गधी पटाई है ! बता कब शादी का इरादा है ? मैने तो अपना जीवन साथी चुन लिया है ! गधी का बाप तो राज़ी नहीं है लेकिन हमने चोरी चोरी शादी करने का फ़ैसला कर लिया है ! इंसानों की तरह उसका बाप एक ही गोत्र में शादी के खिलाफ है, मैं तो नहीं मानता ! यार कमाल है हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं और मेरी माशूका का बाप इंसानो की तरह अभी भी मध्य युगीन सभ्यता और परम्पराओं के आवरण को लपेटे हुए है ! भयया हम तो शादी करेंगे और भाग जाएँगे, प्रदेश ही छोड़ देंगे, हमें नहीं लेना आनर किलिंग का रिस्क ! मैं ही बोलता जा रहा हूँ, तू भी तो कुछ बोल, कब कर रहा है शादी ? जल्दी कर ले ए गबरू जवानी ज़्यादा दिन नहीं रहेगी, फिर कोई घास भी नहीं डालेगा !"

धोबी का गधा बोला. " भया मैं क्या बोलूं, अभी किसी से नज़रें चार नहीं हुई ! कल मैं मालिक के घर के बाहर पीठ पर बोझ लादने के लिए खड़ा था, घर के भीतर मालिक गुस्से होकर चिल्ला रहा था और अपनी एक मात्र लड़की को कह रहा था' 'अब मैं तेरी नादानी बर्दाश्त नहीं कर सकता, रोज कोई न कोई समस्या पैदा करती जा रही है, मैंने फ़ैसला कर लिया है की अब तेरी शादी किसी गधे से ही करूँगा ! मेरे से अच्छा गधा वर इनको और कौन मिलेगा ? इंतजार है ये खूसट मालिक कब मेरी शादी अपनी लड़की से करता है" !

कुमार का गधा बोला, "अरे बांगड़ू उसने कह दिया और तूने मान लिया ! ये इंसान जो कहते हैं करते नहीं हैं ! इनका कोई ईमान धर्म नहीं है ! अरे मवेशी चारा तक खाने वाले हैं इनके नेता ! घर इनसे संभलता नहीं नेता बनकर देश का शासन चलाते हैं ! मवेशी चारा खाते हैं ! जर जोरू ज़मीन के लिए भाई भाई को भी मरवाते हैं ! भाषणों की गोली खिला कर जनता से वोट लेते हैं और फिर उसी जनता को लूटते हैं ! हमारा अपना मज़हब है अपनी सभ्यता है की हम केवल गधे हैं" !

इनकी बातें चल ही रही थी की इन्हें ढूँढते ढूँढते हाथों में डंडे लिए इनके मालिक वहाँ आ गये, ये बेचारे बेजुबान गधे दस दस डंडे खा गये ! दर्द के मारे ढेँचू ढेँचू करने लगे और शादी के स्वप्न ज़मीन पर बिखरने लगे !!

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