kavita




दिल भी इक जिद पे अदा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इससे चाहिए या कुछ भी नहीं

जुदा जब भी हुए दिल को यूँ लगे जैसे
के अब कभी गए तो लौट कर नही मिलना

एक अरसा हुआ मुस्कुराये हुए
देख तेरे अल्फाज़ किस दिन याद आए भुलाये हुए

रोएगा इस कदर वो मेरी लाश से लिपट कर फ़रज़
अगर इस बात का पता होता तो कब का मर गया होता

वो इस आन में रहते हैं कि हम उन्को उंनसे मांगें
हम इस गरूर में रहते हैं कि हम अपनी ही चीज़ें माँगा नहीं करते

दिल मेरा तुझको इतनी शिद्दत से चाहता क्यों है
हर साँस के साथ तेरा ही नाम आता क्यों है

मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ, मगर इतना तो बता
देख कर मुझको तेरे जेहन में आता क्या है

गुज़रता है मेरी हर साँस से तेरा नाम आज भी,
ढलती है तेरे इंतज़ार में मेरी हर शाम आज भी,

तुझको मुझसे रूठे एक ज़माना हो गया,
पर होती है तेरे नाम से मेरी पहचान आज भी

आ देख मुझसे रूठने वाले तेरे बगैर
दिन भी गुज़र गया मेरी शब् भी गुज़र गई

इक उमर हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नहीं भूले

तू अपनी शीशागरी का न कर हुनर जाया
आईना हूँ मैं, टूटने की आदत है मुझे

मेरे खताओं की फेहरिस्त ले के आया था
अजीब शख्स था अपना हिसाब छोड़ गया

भोली सी अदा फिर कोई आज इश्क की जिद पर है
फिर आग का दरिया है और डूबकर जाना है

Comments

Mahfooz Ali said…
बहुत सुंदर रचना है...
--
www.lekhnee.blogspot.com