शनिवार 7 मार्च 2009 को हम दोस्त लोग ख्ााटू बाबा के दर्शन के लिए सुबह 8 बजे रवाना होने थे। लेकिन एक दोस्त जो गाड़ी लेकर आने वाला था। लेकिन पता नहीं कहां पर वो सोया हुआ था ना गाड़ी लेकर आया ना ही फोन को उठा रहा था। आखिरकार वो 12 बजे आया और हम ख्ााटू बाबा के दर्शन के लिए रवाना हुए। हमने हमारे एंटरटेनमेंट के लिए चंग और मंजीरे ले गए थे। जिसे बजाने में मेरा एक दोस्त महारथी है, लेकिन उसे बजाने से पहले शंकर बाबा का प्रसाद लेना जरूरी समझता है, मतलब एक भांग का गोला..... और वो हमने सरकारी भांग की दुकान जो कि स्टेशन पर आराम से उपलब्ध हो जाता है। वहां से दो गोले लिए। एक गोले में से उसने और मैंने ले लिए। बाकी सबने भांग के असर देख रहे थे। इसलिए उन्होंने इसे लेने से पहले ही मना कर दिया और हमने फोर्स भी नहीं किया। बस ड्राइवर की लेने की इच्छा थी लेकिन हमने उसे बाद में लेने को कहा। और हम वहीं से भांग लेते हुए सीधे सीकर रोड पकड़ ली। हमने चंंग और गाड़ी में बज रहे म्यूजिक सिस्टम जिसमें राजस्थानी संगीत ही बज रहा था, पर खूब एंजॉय करते गए। बीच में हमने चाय नाश्ता भी किया। हमें दो घंटे हो गए थे गाड़ी पर चलते हुए लेकिन भांग का असर अभी तक हुआ नहीं था, मैं बता दूं कि भांग का सबसे ’यादा असर हवा लगने से ही होता है मतलब गाड़ी पर जितनी हवा लगेगी उतना असर बढ़ता जाएगा, ।..... और हमने यह कहकर ध्यान नहीं दिया कि भांग ही सरकार की तरह खराब थी.... सरकार का कोई खास असर नहीं तो उसकी भांग का असर कहां होना था।हम अभी रास्ते में ही थे कि एक बस जो कि पूरी लड़कियों से भरी हुई थी हमेें दिखाई दी, हम सभी ने उन्हें देख कर ही संतोष लिया, लेकिन एक लड़का हममें से कुछ ’यादा ही रंगीला है, वो बिना भांग पिए ही उसके नशे में रहता है, उसने उन्हें कमेंट जो कि गंदे नहीं थे, लेकिन उन लड़कियों को उसने कमेंट किए। लड़कियों ने भी उसे रिस्पांस दिया और वे बस में से हमें कमेंट करने लगी। अब हम भी इस कमेंट अंताक्षरी का मजा ले रहे थे।....... लेकिन उस बस वाले ड्राइवर ने यह देखा तो वह इसे अच्छा न समझते हुए उसने बस को स्पीड में लेते हुए आगे निकल गया.... हम चाहते तो उसे पकड़ सकते थे लेकिन हम हमारे रंगीले मूड को खराब नहीं करना चाहते थे,..... मतलब हम फाल्गुन के उस दोपहर का आनंद गाडि़यों की स्पीड में न लेकर चंग और म्यूजिक सिस्टम में बज रहे गाने से लेना चाहते थे और हमने उससे ही मजे लिए। अब हम खाटू के मोड़ पर पहुंच गए थे जहां से गाडि़यां बहुत ही धीरे ही चल रही थी हमने गाड़ी स्पीड में न लेते हुए मजे से ही गाड़ी चलाते गए। तभी एक व्यक्ति गाड़ृी के सामने हाथ जोड़कर खड़ा नजर आया और जब हमने गाड़ी रोकी तो वह बोला प्लीज नाश्ता कीजिए। हमें आश्चर्य हुआ किस बात का नाश्ता ........फिर समझ में आया ये `दानी´ लोग दिखावे के लिए ग्यारस पर इस तरह से पैदल चलने वाले या खाटू के दरबार में आने वाले लोगों को खाने में तरह-तरह की चीजें देते हैं। शुरू में तो हमने अंगूर केले काले अंगूर, पाइनेपल, और तरह तरह के फल खाने शुरू किए। लेकिन अब हर 2 मिनट की दूरी पर फल लेकर लोग खडे़ नजर आए, हम सभी 8 लोग भरपेट फल खा चुके थे और हमारी बिल्कुल भी हिम्मत नहीं थी और फल खाने की लेकिन वे `दानी´ लोग हमारी गाड़ी के आगे खडे़ नजर आते और हमें देने के लिए मजबूर करते.... और गाड़ी का कांच खुला होने पर वे फलों को गाड़ी के अंदर ही फेंक देते...... जिससे लगता था कि सिर्फ दान करना वही व्यक्ति चाहता है जिसने यह खर्चा किया है मतलब जो यह फल बांट रहा है बाकी उसके साथी-रिश्तेदार ये सब दिखावा खत्म करके जल्द से जल्द घर जाना चाहते थे। लेकिन उस 10 किलोमीटर की दूरी में हमें कम से कम 4 किलो के आसपास संतरे इकट्ठे हो चुके थे,, जबकि हमने 2-3 किलो खा चुके थे... और हम नहीं लेना चाहते थे लेकिन गाड़ी के कांच खुले होने पर वे दानी लोग गाड़ी में उन फलों को फेंक ही देते थे... आगे चलने पर हमें ’यूस, खाना, टॉफी, कॉफी, चाय, पता नहीं क्या-क्या था जो खाने में बहुत अच्छा था पर हम भरपेट थे इसलिए देखकर ही काम चलाना पड़ा लेकिन हमारे एक दोस्त ने फलों को जरूर इकट्ठा किया, जो कि वापस आते समय हमारे काम आए....। लेकिन दानी लोगों को देख्ाकर एक ख्याल मेरे दिल में जरूर आया कि ये लोग यहां ऐसे बांट रहे हैं मतलब गाड़ी को वे तब तक जाने नहीं देते थे जब तक कोई गाड़ी वाला उनसे कुछ ले न ले।.... वे दानी लोग हाथ जोड़कर खडे़ थे.. तब मैंने सोचा ये लोग किसी गरीब को भी अगर खिला दें तो वे कितनी दुआएं देगा.... वे गरीब लोग हाथ जोड़कर उनसे मांगते-मांगते थक जाते हैं लेकिन लोग उन्हें भीख के नाम पर एक रुपए तक नहीं देते .... खाने या पकवान, फलों की बात तो दूर है।।। अब एक बात और बताऊòं हम खाते-खाते सचमुच थक गए थे... लेकिन थोड़ी भांग का असर और उस मस्ती के माहौल में हम हंसने लगे..... पता नहीं क्यों लेकिन हंसने लगे.... अचानक एक दोस्त जोर से चिल्लाया अरे! वो देखो नाश्ता लेकर आ गए।।। जल्दी से गाड़ी के कांच बंद कर लो... वो इतने ढंग से चिल्लाया कि मेरी हंसी इतनी तेज जैसी हमेशा रहती है उससे भी तेज और बहुत देर तक हम हंसते रहे..... मैं तो पागलों की तरह कम से कम 10 मिनट तक हंसता ही रहा.... तब हमने गाड़ी एक जगह पानी पीने के लिए रोकी तो गाड़ी की हालत में तरस आया... आते समय टवेरा गाड़ी जितनी शान से थी... उतनी अब किसी सरकारी बस की तरह लग रही थी जैसे गाड़ी में पडे़ फल और खाने के टुकडे़ चाय कॉफी और ’यूस गाड़ी में बिखर गया था और सीट पर दो लड़के तो संतरों पर ही बैठे थे जिससे गाड़ी और उनकी पेंटें दोनों खराब हो चुकी थी....वो देखकर हम फिर से पागलों की तरह हंसने लगे.. लेकिन मैं जरूर एक बार उन गरीबों के बारे में सोच लेता था। और अब हम ऐसी जगह पहुंच गए थे जहां से गाडि़यां आगे नहीं जा सकती थी, हमने पाकिZग टिकट लिया और गाड़ी को खड़ा किया.... और पैदल ही यात्रा पर निकले वहां से खाटूबाबा का मंदिर करीब 5-6 किलोमीटर दूर था.... वहां से हम चंग और मंजीरे लेकर रवाना हुए.... यहां से मेले का इतना सुंदर दृश्य था कि लगा ये है खाटू बाबा की महिमा.... तब देखा लोग लेटे-लेटे भी आगे बढ़ रहे हैं... वैसे हम भी नंगे पैर थे... लेकिन उन लेटकर यात्रा को पूरा करने वालों को देखकर मेरी आंखों में आंसू आ गए कि भगवान की इतनी महिमा भी हो सकती है कि लोग अपने शरीर पर इतने जुल्म वैसे जुल्म वर्ड यहां सही नहीं है लेकिन मुझे और कुछ सूझा भी नहीं... और उन लेटकर यात्राकरने वाले लोगों के लिए जरूर प्रबंधन ने कारपेट बिछा रखे थे जिससे उन्हें थोड़ा सुकून भी था, और एक बात कहूं उन लेटकर यात्रा करने वालों में आदमी ही नहीं औरतें भी थीं,....इसी प्रकार हम मस्ती करने हुए आगे बढ़ते गए और बीच बीच में वे संतरे फल देने वाले लोग अब भी थे... वे अपना काम कर रहे थे हम अपना मतलब वे दे रहे थे और हम मना कर रहे थे.... तब मेरे एक मित्र ने कहा अरे प्रसाद तो ले लो ये फ्री में नहीं मिलेगा इसके तो पैसे भी देने पडेेंगे और हम कतार में आगे बढ़ते गए और मजे भी लेते रहे। वैसे अबकी बार की व्यवस्था की दाद देनी पडे़गी हमें कतार में लगने के बाद एक बार भी रुकना नहीं पड्ा हम लगातार चलते रहे ... वैसे हम दोस्तों का खाटू जाने का एक्सपीरियेंस 8-10 बार का है लेकिन इस मेले में हम पहली बार ही आए थे। लोग खाटू के झंडे़ भी लेते हुए चल रहे थे और गाते हुए जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। आगे जाकर उन झंड़ों को इकट्ठा किया जा रहा था और खाटू बाबा मंदिर के पास वाले मंदिर की छत पर इस तरह जमाया जा रहा था कि वो सीन ही बहुत प्यारा लग रहा था। ओर हम प्रसाद लेते हुए लाइन में ही आगे बढ़ते हुए मंदिर तक पहुंचे और दर्शन किए पंडित लोग श्रद्धालुओं को एक सेंकड के लिए भी नहीं रुकने दे रहे थे लेकिन हम लोगों ने दर्शन आराम से किए... ओर मंदिर के बाहर निकले ही थे कि संभ्रत परिवार की एक औरत से पंडित से विनती कर रही थी कि मुझे श्याम प्यारे के दर्शन नहीं हुए प्लीज एक बार जाने दो लेकिन पंडित ने पहली बार तो उसकी नहीं सुनी लेकिन दो तीन बार बोलने के बाद और उस औरत के साथ चल रही औरत ने भी विनती की कि इन्हें जाने दो तब पंडित ने उसे जाने दिया। हम आगे बढ़ गए थे और उस औरत में संतुष्टि थी। मंदिर से पूरी तरह बाहर निकलने के बाद हम सभी इकट्ठे हुए और चलने लगे। मंदिर में आपके द्वारा चढ़ाया गया प्रसाद वहां रखा था नारियल और फूल बिख्ारे पडे़ थे जिससे लग रहा कि इनकी कोई देखभाल तो होने वाली है नहीं फिर इसे चढ़ाने से फायदा क्या हुआ। लेकिन मेवे और पेडे़ का प्रसाद जरूर वापस दिया जा रहा था। हमने वो लेकर हमारी गाड़ी की तरह रवाना हुए। बीच में एक होटल में चाय और प्याज की कचौरी खाई। प्याज की कचौरी में प्याज तो नाम का था उसमें आलू और पता नहीं कौन-कौनसे स्वाद आ रहे थे। शायद होटल वाले ने बची हुई सारी सçब्जयां उसमें ही डाल दी थी। हम गाड़ी तक पहुंचे और रवाना हुए आते समय वापस वो ही गाड़ी के आगे आने वाले आए और हमें रोका वहां हमने देशी घी का हलवा खाया थोड़ी देर वहां चल रहे म्यूजिक सिस्टम पर डांस किया। रवाना हुए अब सभी दोस्त थक चुके थे। इसलिए गाड़ी में सभी दो मिनट तक बातेें करते रहे फिर एक-एक की धीरे धीरे आंख लग गई। मैं सबसे पहले सो गया था। वापस आते समय 6.30 बजे हमारे बडे़ भाई लोगों का घर से फोन आया कि हालत क्या हैं खाटू बाबा के दर्शन में। मतलब भीड़ और दर्शन से था। हमने कहा आ जाओ आराम से दर्शन हो जाएंगे। वैसे उनका प्लान सुबह से ही था लेकिन वो लेट हो गए थे। वे घर से रवाना हुए और हम खाटू बाबा से चल ही रहे थे। हम रास्ते में 1.30-2 घंटे की नींद लेते हुए फिर उठे वैसे मेरे एक दोस्त पहले उठ गया और वो अब हमें सोने नहीं दे रहा था लेकिन मैं फिर भी थोड़ा ’यादा सो लिया। अब चौंमू हम पहुंच गए थे वहां हमने चाय पी और बडे़ भाइयों को फोन किया तो पता लगा वे भी चौंमूं में ही है हमने उन्हें कहा हम इस ढाबे पर हैं आ जाओ वे 10 मिनट बाद वहां पहुंच गए हमने वहां उनसे अपने हाल चाल कहे और बातें की। वे भी खाने की बातें सुनकर खूब हंसे। हमने उन्हें हमारे लाए हुए फल भी दिए। थोड़ी सी भांग बची हुई थी वो एक बडे़ भाई को दी। फिर वे हमें उस ढाबे पर ही छोड़कर आगे रवाना हो गए और हम भी उस ढाबे से कुछ नाश्ता करके रवाना हुए। बस अब नींद और थकान से हम पूरी तरह चूर थे इसलिए गाड़ी में फिर सो गए। जयपुर पहुंचते ही हमने खाने के बारे में सोचा वैसे भूख इतनी नहीं थी लेकिन बाहर खाने का ही प्लान था सो हम एमआई रोड पर रामजीलाल का ढाबा है, हम वहीं वीकेंड पर जाते हैं। पर गए और ऑर्डर किया खाना खाया और घर वहां से पास है ही चले गए। घर पहुंचने पर 10.30 बज चुके थे। मेरा जो दोस्त अब तक चंग बजा रहा था शायद उसमें भांग की मस्ती बोल रही थी वो बजाता-बजाता घर पहुंचा, हम सभी पास में ही रहते हैं सभी अपने घरों में घुस गए और जाकर फिर सो गए।
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