एक जमाने में भैया दूज से शुरू होता था नया वित्तीय वर्ष
ग्लोबलाइजेशन के इस युग में अब तो पूरी दुनिया में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक का होने लगा है लेकिन स्वतंत्रता से पहले जयपुर रियासत में यह दीपावली के बाद भाई दूज से शुरू होता था। जयपुर के हर घर में इस दिन बांस की कलम जिसे नेजा भी कहा जाता था, दवात और बहि यों की पूजा की जाती थी। यह परंपरा अब लुप्त सी हो गई है। कुछ परंपरागत लोग अभी भी इसका पालन कर रहे हैं पर वित्तीय वर्ष तो अंग्रेजी सि स्टम से मानन े की ही मजबूरी हो गई है। बहि यों का स्थान कंप्यूटर ने ले लिया है। दीपावली के बाद की पहली दूज को यम और चि त्रगुप्त का दिन माना जाता है। यमराज की आराधना तो धनतेरस को कर ली जाती है इसलि ए इस दिन यमराज के मुनीम चि त्रगुप्त की आराधना करने का प्रच लन है। कहते हैं इस दिन यमराज अपनी बहन के घर जाते हैं इसलि ए चि त्रगुप्त घर-घर में पूजे जाते हैं। चि त्रगुप्त को डायरी लेखन का अधि ष्ठाता माना जाता है। कलम की पूजा तो आज भी की जाती है, लेकिन बहि यों के पूजने की परंपरा अब खत्म हो चली है। ऐसे होती थी पूजा-अर्चना रियासत काल में लोग बांस की नई कलम बनाते थे, पुरानी सि याही को भी ढोल दि या जाता था और दवातों में नई सि याही बनाकर भरी जाती थी। बहि यों पर सि ंदूर से स्वा स्ति क बनाकर चि त्रगुप्त की आराधना की जाती थी। बहि यों की दुकानों पर खूब भीड़ हो जाती थी। उस समय परकोटे में ही मिठ ाई की दुकानों की तरह व्या पारी बहि यों की दुकानें भी सजाते थे। गोवर्धन पूजा का रूप था व्या पक भाई दूज से पहले अर्था त दीपावली के दूसरे दिन जयपुर में आधा दिन तो रामा-श्या मा में बीतता था और शाम को हर घर में गोवर्धन पूजा करने की परंपरा थी। उस समय प्राय: हर घर में गाय होती थी इसलि ए गोबर सहज सुलभ था। गोबर से गोवर्धन पर्व त की पूजा कर उस पर से गाय को गुजारा जाता था। पर्वत पर गाय का खुर पडऩा शुभ माना जाता है। गोवर्धन पूजा के आयोजन अब मोहल्ला, कमेटियों के हाथ तक सिमटकर रह गया है। घर-घर में उसका रूप अब समाप्त-सा हो गया है। साभार दैनिक भास्कर
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